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Urad dal ki kheti: इसी फरवरी में बो दें उड़द

Urad dal ki kheti: इसी फरवरी में बो दें उड़द

उड़द की दाल को सर्वोत्तम माना गया है। कारण है, इसमें सबसे ज्यादा प्रोटीन का होना। आपके शरीर में जितना प्रोटीन, वसा, कैल्शियम होगा, बुद्धि उतनी ही तेज चलेगी, उतने ही आप निरोगी रहेंगे। यही वजह है कि उड़द की दाल को प्रायः हर भारतीय एक माह में दो बार जरूर खाता है या खाने का प्रयास करता है।

हजारों साल से हो रही है खेती

उड़द दाल की खेती भारत में हजारों साल पहले से हो रही है। यह माना जाता है कि उड़द दाल भारतीय उपमहाद्वीप की ही खोज है। इस दाल को बाद के वक्त में पाकिस्तान, चीन, इंडोनेशिया, श्रीलंका जैसे देशों ने अपना लिया। उड़द की दाल भारत में उपनिषद काल से इस्तेमाल की जा रही है। माना जाता है कि इसके इस्तेमाल से पेट संबंधित बीमारी, मानसिक अवसाद आदि दूर होते हैं।

फायदेमंद है उड़द की खेती

urad ki kheti ये भी पढ़े: दलहनी फसलों में लगने वाले रोग—निदान उड़द की खेती फायदेमंद होती है। इसका बाजार में बढ़िया रेट मिल जाता है। इसकी खेती के लिए मौसम का अनुकूल होना पहली शर्त है। यह माना जाता है कि जब शीतकाल की विदाई हो रही हो और गर्मी आने वाली हो, तब का मौसम इसकी खेती के लिए सर्वाधिक अनुकूल होता है। उस लिहाज से देखें तो पूरे फरवरी माह में आप उड़द की खेती कर सकते हैं। शर्त यह है कि बहुत ठंड या बहुत गर्मी नहीं होनी चाहिए।

70 से 90 दिनों में फसल तैयार

उड़द की फसल को तैयार होने में बहुत वक्त नहीं लगता। कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि अगर फरवरी के मध्य में उड़द की खेती की जाए कि फसल मई के मध्य में आराम से काटी जा सकती है। कुल मिलाकर 80 से 90 दिनों में उड़द की फसल तैयार हो जाती है। हां, इसके लिए जरूरी है कि बारिश न हो। अगर फसल लगाने के पंद्रह रोज पहले हल्की बारिश हो गई तो वह बढ़िया साबित होती है। लेकिन, अगर फसल के बीच में या फिर कटने के टाइम में बारिश हो जाए तो फसल के खराब होने की आशंका रहती है।

आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सबसे ज्यादा होती है खेती

urad dal ki kheti इसलिए, उड़द की खेती पूरी तरह मौसम के मिजाज पर निर्भर है और यही कारण है कि जहां मौसम ठीक रहता है, वहीं उड़द की खेती भी होती है। इस लिहाज से भारत के उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में उड़द की खेती सबसे ज्यादा होती है। शेष राज्यों में या तो खेती नहीं होती है या फिर बहुत की कम। उपरोक्त तीनों बड़े राज्यों का मौसम राष्ट्रीय स्तर पर आज भी काफी अनुकूल है। ये भी पढ़े: भारत सरकार ने खरीफ फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ाया

जमीन का चयन

उड़द की खेती के लिए बहुत जरूरी है जमीन का शानदार होना। यह जमीन हल्की रेतीला, दोमट अथवा मध्यम प्रकार की भूमि हो सकती है जिसमें पानी ठहरे नहीं। अगर पानी ठहर गया तो फिर उड़द की खेती नहीं हो पाएगी। तो यह बहुत जरूरी है कि आप जहां भी उड़द की खेती करना चाहें, उस जमीन पर पानी का निकास बढ़िया हो।

समतल जमीन है जरूरी

जमीन के चयन के बाद यह जरूरी होता है कि वहां तीन से चार बार हल या ट्रैक्टर चला कर खेत को समतल कर लिया जाए। उबड़-खाबड़ या ढलाऊं जमीन पर इसकी फसल कामयाब नहीं होती है। बेहतर यह होता है कि आप तब पौधों की बोनी करें, जब वर्षा न हुई हो। इससे पैदावार बढ़ने की संभावना होती है।

खेती का तरीका

कृषि वाज्ञानिकों के अनुसार, उड़द की अधिकांश फसलें प्रकाशकाल में ही बढ़िया होती हैं। यानी, इन्हें पर्याप्त रौशनी मिलती रहनी चाहिए। मोटे तौर पर 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट का तापमान इनके लिए सबसे बढ़िया होता है। इसमें रोज पानी देने का झंझट नहीं रहता। हां, खर-पतवार तेजी से हटाते रहना चाहिए और समय-समय पर कीटनाशक का छिड़काव जरूर करते रहना चाहिए। उड़द की फसल में कीड़े बहुत तेजी के साथ लगते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि फसल के आधा फीट के होते ही कीटनाशकों का छिड़काव शुरू कर दिया जाए।

फायदा

उड़द में प्रोटीन, कैल्शियम, वसा, रेशा, लवण, कार्बोहाइड्रेट और कैलोरीफिल अलग-अलग अनुपात में होते हैं। आप संयमित तरीके से इस दाल का सेवन करें तो ताजिंदगी स्वस्थ रहेंगे। ये भी पढ़े: खरीफ विपणन सीजन 2020-21 के दौरान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का क्रियान्वयन

उड़द के प्रकार

urad dal ke prakar टी-9 (75 दिनों में तैयार हो जाता है) पंत यू 30 (70 दिनों में तैयार हो जाता है) खरगोन (85 दिनों में तैयार हो जाता है) पीडीयू-1 (75 दिनों में तैयार हो जाता है) जवाहर (70 दिनों में तैयार हो जाता है) टीपीयू-4 (70 दिनों में तैयार हो जाता है)

कैसे करें बुआई

कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि उड़द का बीज एक एकड़ में 6 से 8 किलो के बीच ही बोना चाहिए। बुआई के पहले बीज को 3 ग्राम थायरम अथवा 2.5 ग्राम डायथेन एम-45 प्रति किलो के आधार पर उपचारित करना चाहिए। हां, दो पौधों के बीच में 10 सेंटीमीटर की दूरी जरूर होनी चाहिए। दो क्यारियों के बीच में 30 सेंटीमीटर की दूरी आवश्यक है। बीज को कम से कम 5 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए। हां, बीज को कम से कम 5 सेंटीमीटर की गहराई में ही बोना चाहिए। ये भी पढ़े: कृषि एवं पर्यावरण विषय पर वैज्ञानिक संवाद

निदाई-गुड़ाई

urad dal ki fasal उड़द की फसल को ज्यादा केयर करने की जरूरत होती है। यह बहुत जरूरी है कि आप उसकी निदाई-गुड़ाई समय पर करते रहें। बड़ा उत्पादन चाहें तो आपको यह काम रोज करना पड़ेगा। अत्याधुनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल जरूरी है। अन्यथा ये कीट आपकी फसल को बर्बाद कर देंगे। माना जाता है कि कीटनाशक वासालिन को 250 लीटर पानी में 800 एमएल डाल कर छिड़काव करना चाहिए।

अकेले बोना ज्यादा बेहतर

माना जाता है कि उड़द को अगर अकेला बोया जाए तो 20 किलो बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सबसे उचित मानक है। ऐसे ही, अगर आप उड़द के साथ कोई अन्य बोते हैं तो प्रति हेक्टेयर 8 से 10 किलोग्राम उडद का बीच बेहतर होता है।

उड़द के अन्य फायदे

urad dal ke fayde उड़द दाल के अनेक फायदे हैं। आयुर्वेद में इसका जम कर इस्तेमाल होता है। अगर आपको सिरदर्द है तो उड़द दाल आपको राहत दे सकता है। आपको बस 50 ग्राम उड़द दाल में 100 मिलीलीट दूध डालना है और घी पकाना है। उसे आप खाएं। आपकी तकलीफ दूर हो जाएगी। इसके साथ ही, बालों में होने वाली रूसी से भी आपको उड़द दाल छुटकारा दिलाती है। आप उड़द का भस्म बना कर अर्कदूध तथा सरसों मिलाकर एक प्रकार का लेप बना लें। इसके सिर में लगाएं। एक तो आपकी रूसी दूर हो जाएगी, दूसरे अगर आप गंजे हो रहे हैं तो हेयर फाल ठीक हो जाएगा। कुल मिलाकर, अगर आप फरवरी में वैज्ञानिक विधि से उड़द की खेती को लेकर गंभीर हैं तो वक्त न गंवाएं। पहले जमीन समतल कर लें, तीन-चार बार हल-बैल या ट्रैक्टर चला कर उसके घास-फूस अलग कर लें, फिर 5 सेंटीमीटर की गहराई में बीज रोपित करें और लगातार क्यारियों की साफ-सफाई करते रहें। 70 से 90 दिनों के बीच आपकी फसल तैयार हो जाएगी। आप इस फसल का मनचाहा इस्तेमाल कर सकते हैं।
उड़द की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

उड़द की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

उड़द एक दलहन फसलों के अंतर्गत आने वाली फसल है, जिसकी खेती भारत के राजस्थान, बिहार, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के सिंचित इलाकों में की जाती है। 

यह एक अल्प समयावधी की फसल है, जो कि 60-65 दिनों के समयांतराल में पक जाती है। इसके दानों में 60% प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 24 फीसदी प्रोटीन तथा 1.3 फीसदी वसा पाया जाता है।

उड़द की खेती के लिए भूमि का चयन एवं तैयारी 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उड़द की खेती के लिए हल्की रेतीली, दोमट मृदा उपयुक्त मानी जाती है। वहीं, समुचित जल निकासी की बेहतरीन व्यवस्था होना चाहिए। वहीं, मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7.8 के बीच होना चाहिए।

इसकी बुवाई के लिए खेत की दो-तीन जुताई बारिश से पहले करनी चाहिए। वहीं, शानदार वर्षा होने के पश्चात बुवाई करनी चाहिए। ताकि फसल की बेहतर बढ़वार में सहायता मिल सके।

उड़द की खेती के लिए उन्नत प्रजातियां इस प्रकार हैं 

1) चितकबरा रोग प्रतिरोधी किस्में

वी.बी.जी-04-008, वी.बी.एन-6, माश-114, को.-06. माश-479, पंत उर्द-31, आई.पी.यू-02-43, वाबन-1, ए.डी.टी-4 एवं 5, एल.बी.जी-20 आदि।

2) खरीफ सीजन की किस्में

के.यू-309, के.यू-99-21, मधुरा मिनीमु-217, ए.के.यू-15 आदि।

3) रबी सीजन की किस्में

के.यू-301, ए.के.यू-4, टी.यू.-94-2, आजाद उर्द-1, मास-414, एल.बी.जी-402, शेखर-2 आदि।

4) शीघ्र पकने वाली किस्में

प्रसाद, पंत उर्द-40 तथा वी.बी.एन-5।

उड़द की खेती के लिए बुवाई का समय व तरीका

खरीफ सीजन में जून के अंतिम सप्ताह में पर्याप्त बारिश के उपरांत उड़द की बुवाई करनी चाहिए। इसके लिए कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर, पौधों से पौधों की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। 

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वहीं, बीज को 4 से 6 सेंटीमीटर की गहराई पर बोएं। वहीं, गर्मी के दिनों में उड़द की बुवाई फरवरी के तीसरे सप्ताह से अप्रैल के पहले सप्ताह तक की जा सकती है।

उड़द की खेती के लिए बीज की मात्रा इस प्रकार है

खरीफ सीजन के लिए प्रति हेक्टेयर 12 से 15 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है। वहीं यदि आप गर्मी में उड़द की खेती कर रहे हैं, तो प्रति हेक्टेयर 20 से 25 किलोग्राम बीज की मात्रा लेनी पड़ेगी।

उड़द की खेती के लिए बीजोपचार इस प्रकार करें

उड़द की बुवाई से पहले इसके बीज को 2 ग्राम थायरम और 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम के मिश्रण से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करना चाहिए। 

इसके बाद बीज को इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस की 7 ग्राम मात्रा लेकर प्रति किलोग्राम बीज को शोधित करना चाहिए। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि बीज शोधन को कल्चर से दो तीन दिन पहले ही कर लेना चाहिए।

इसके पश्चात 250 ग्राम राइजोबियम कल्चर से बीजों को उपचारित किया जाता है। इसके लिए 50 ग्राम शक्कर गुड़ को आधा या एक लीटर पानी में अच्छी तरह से उबालकर ठंडा कर लें। 

फिर इसमें राइजोबियम कल्चर डालकर सही तरीके से हिला लें। अब 10 किलोग्राम बीज की मात्रा को इस घोल से शानदार ढ़ंग से उपचारित करें। उपचारित बीज को 8 से 10 घंटे तक छाया में रखने के पश्चात ही बिजाई करनी चाहिए।

उड़द की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक का उपयोग

उड़द की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन 15 से 20 किलोग्राम, फास्फोरस 40 से 50 किलोग्राम तथा पोटाश 30 से 40 किलोग्राम खेत की अंतिम जुताई के समय डालनी चाहिए। 100 किलोग्राम डीएपी से नाइट्रोजन तथा फास्फोरस की पूर्ति हो जाती है।

उड़द की खेती के लिए सिंचाई कैसे करनी चाहिए

सामान्य तौर पर वर्षाकालीन उड़द की खेती में सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। परंतु, फली बनते समय खेत में पर्याप्त नमी नहीं है तो एक सिंचाई कर देनी चाहिए। 

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वहीं, जायद के सीजन में उड़द की खेती के लिए 3 से 4 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए पलेवा करने के पश्चात बुवाई की जाती है। फिर 2 से 3 सिंचाई 15 से 20 दिन के समयांतराल पर करनी चाहिए। साथ ही, इस बात का विशेष ध्यान रखें कि फसल में फूल बनते वक्त पर्याप्त नमी होनी चाहिए।

उड़द की खेती के लिए कटाई और मड़ाई इस प्रकार करें

60 से 65 दिनों बाद जब उड़द की फलियां 70 से 80 फीसद पक जाए तब हंसिया से इसकी कटाई की जाती है। इसके उपरांत फसल को 3 से 4 धूप में अच्छी तरह सुखाकर थ्रेसर की सहायता से बीज और भूसे को अलग कर लिया जाता है।

प्रति हेक्टेयर उड़द की खेती से कितनी उपज मिलती है

उड़द की खेती से प्रति हेक्टेयर 12 से 15 क्विंटल तक उत्पादन बड़ी सहजता से प्राप्त हो जाता है। उत्पादन को धूप में बेहतर तरीके से सुखाने के उपरांत जब बीजों में 8 से 9 फीसद नमी बच जाए तब सही तरीके से भंडारण करना चाहिए।